A poetic description of the Fall season (शरद ऋतू) from Vishnu Purana, found out from Guruji. It’s amazing!
(reproduced verbatim from GitaPress translation)
इस प्रकार उन राम और कृष्ण के व्रज में विहार करते करते वर्षाकाल बीत गया और प्रफुल्लित कमलों से युक्त शरद ऋतू आ गई| जैसे गृहस्थ पुरूष पुत्र और क्षेत्र आदि में लगी हुई ममता से संताप पाते हैं उसी प्रकार मछलियाँ गड्डों के जल में अत्यन्त ताप पाने लगीं| संसार की असारता को जानकर जिस प्रकार योगीजन शांत हो जाते हैं, उसी प्रकार मयूरगण मदहीन होकर मौन हो गए| विज्ञानी गण जिस प्रकार घर का त्याग कर देते हैं वैसे ही निर्मल श्वेत मेघों ने अपना जलस्वरूप सर्वस्य छोड़कर आकाशमंडल का परित्याग कर दिया|
विविध पदार्थों में ममता करने से जैसे देहधारियों के हृदय सारहीन हो जाते हैं वैसे ही शरतकालीन सूर्य के ताप से सरोवर सूख गए| निर्मलचित्त पुरुषों के मन जिस प्रकार ज्ञान द्वारा समता प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार शरतकालीन जलों को कुमुदों से सम्बन्ध प्राप्त हो गया| जिस प्रकार साधू-कुल में चरम-देह-धारी योगी सुशोभित होते हैं उसी प्रकार तारका-मंडल-मंडित निर्मल आकाश में पूर्ण-चंद्र विराजमान हुआ|
जिस प्रकार क्षेत्र और पुत्र आदि में बड़ी हुई ममता को विवेकीजन शनै-शनै त्याग देते हैं वैसे ही जलाशयों का जल धीरे-धीरे अपने तट को छोड़ने लगा| जिस प्रकार अंतरयों (विघ्नों) से विचलित हुए कुयोगियों का क्लेशों से पुनः संयोग हो जाता है उसी प्रकार पहले छोड़े हुए सरोवर के जल से हंसों का पुनः संयोग हो गया| क्रमंशः महायोग प्राप्त कर लेने पर जैसे यती निश्चालात्मा हो जाता है वैसे ही जल के स्थिर हो जाने से समुद्र निश्चल हो गया|
जिस प्रकार सर्वगत भगवान् विष्णु को जान लेने पर मेधावी पुरुषों के चित्त शांत हो जाते हैं वैसे ही समस्त जलाशयों का जल स्वच्छ हो गया| योगाग्नि द्वारा क्लेशसमूह के नष्ट हो जाने पर जैसे योगियों के चित्त स्वच्छ हो जाते हैं उसी प्रकार शीत के कारण मेघों के लीन हो जाने से आकाश निर्मल हो गया|
जिस प्रकार अंहकार-जनित महान दुखों विवेक शांत कर देता है उसी प्रकार सूर्यकिरणों से उत्पन्न हुए ताप को चन्द्रमा ने शांत कर दिया| प्रत्याहार जैसे इन्द्रियों को उनके विषयों से खींच लेता है वैसे ही शरतकाल नें आकाश से मेघों को, पृथ्वी से धूलि को और जल से मल को दूर कर दिया|
[पानी से भर जाने के कारण] मानों तालाबों के जल पूरक कर चुकने पर अब [स्थिर रहने और सूखने से] रात-दिन कुम्भक एवं रेचक क्रिया द्वारा प्राणायाम का अभ्यास कर रहे हैं|